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ग़ज़ल
न जाने कौन सी उलझन रवाँ सीने में रहती है
ब-हर-लम्हा मिरे तार-ए-नफ़स में गाँठ पड़ती है
अमीर हम्ज़ा साक़िब
ग़ज़ल
इम्तियाज़ काविश
ग़ज़ल
क्यूँ ज़माने भर की ख़ुशियों से है कोई ग़म 'अज़ीज़
आइने के पास आओ तुम को समझाते हैं हम
मुसहफ़ इक़बाल तौसिफ़ी
ग़ज़ल
ग़म-ए-दुनिया नहीं फिर कौन सा ग़म है हम को
फ़िक्र-ओ-अंदेशा-ए-उक़बा से भी रम है हम को
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
हैं तेरे फूल से अल्फ़ाज़ की ग़ज़लें 'आसी'
बज़्म में दूर से आती है सुख़न की ख़ुशबू
अब्दुल समद आसी
ग़ज़ल
इफ़्शा हुआ है जब से उल्फ़त का राज़ मेरा
हर शख़्स की ज़बाँ पर अफ़्साना हो गया हूँ