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ग़ज़ल
मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
सर-ए-आईना मिरा अक्स है पस-ए-आईना कोई और है
सलीम कौसर
ग़ज़ल
कहीं तुम अपनी क़िस्मत का लिखा तब्दील कर लेते
तो शायद हम भी अपना रास्ता तब्दील कर लेते
सलीम कौसर
ग़ज़ल
मता-ए-कौसर-ओ-ज़मज़म के पैमाने तिरी आँखें
फ़रिश्तों को बना देती हैं दीवाने तिरी आँखें