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ग़ज़ल
पुकारती है मुझे ख़ाक-ए-ख़िश्त-ए-पैवस्ता
ये नस्ब होने का है ख़त्म सिलसिला तुझ पे
अफ़ज़ाल अहमद सय्यद
ग़ज़ल
गर कुछ हो दर्द आईना यूँ चर्ख़-ए-ज़िश्त में
इन सूरतों को सिर्फ़ करे ख़ाक-ओ-ख़िश्त में
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
पारसा हम-राह ले जाएँगे पिंदार-ए-अमल
हम तो अपने साथ उन की ख़ाक-ए-पा ले जाएँगे
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
जिसे मिल जाए ख़ाक-ए-पाक-ए-दश्त-ए-कर्बला 'परवीं'
पलट कर भी न देखे वो कभी इक्सीर की सूरत
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
सर के ऊपर ख़ाक उड़ी तो सब दिल थाम के बैठ गए
ख़बर नहीं थी गुज़र चुका है मौसम अब्र-ए-नवाज़िश का
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
जब हो दम-ए-आख़िर तो बचा लेने की ताक़त
फिर ख़ाक-ए-शिफ़ा में न कहीं आब-ए-बक़ा में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
तन्हा जिए तो ख़ाक जिए लुत्फ़ क्या लिया
ऐ ख़िज़्र ये तो ज़िंदगी में ज़िंदगी नहीं
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
किस तरह कर दिया दिल-ए-नाज़ुक को चूर चूर
इस वाक़िआ की ख़ाक है पत्थर को इत्तिलाअ