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ग़ज़ल
अलम से याँ तलक रोईं कि आख़िर हो गईं रुस्वा
डुबाया हाए आँखों ने मिज़ा का ख़ानदाँ अपना
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
वक़्त-ए-इमदाद है ऐ हिम्मत-ए-गुस्ताख़ी-ए-शौक़
शौक़-अंगेज़ हैं उन के लब-ए-ख़ंदाँ क्या क्या
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
ले के आई तो सबा उस गुल-ए-चीनी का पयाम
वो सही ज़ख़्म की सूरत लब-ए-ख़ंदाँ तो खुला