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ग़ज़ल
ख़ालिद मोईन
ग़ज़ल
पता लगाना हुआ है दुश्वार कौन है ख़ल्त-मल्त किस का
है ज़ात उस की वजूद मेरा है जाँ किसी की बदन है कोई
शाैकत वास्ती
ग़ज़ल
ख़ला-मला हो के ग़ैर से कोई मूँग छाती पे दल रहा है
किसी के अरमान बुझ रहे हैं किसी का अरमाँ निकल रहा है
पंडित त्रिभुवननाथ ज़ुतशी ज़ार देहलवी
ग़ज़ल
कहाँ आ के रुकने थे रास्ते कहाँ मोड़ था उसे भूल जा
वो जो मिल गया उसे याद रख जो नहीं मिला उसे भूल जा
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
चेहरा लाला-रंग हुआ है मौसम-ए-रंज-ओ-मलाल के बाद
हम ने जीने का गुर जाना ज़हर के इस्तिमाल के बाद