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ग़ज़ल
जिस वक़्त तू ने फ़र्त-ए-मोहब्बत में अपना आप
गर्द-ए-रह-ए-तलब में मिटाया तो हम हुए
राव मोहम्मद उमर
ग़ज़ल
बस ये एजाज़-ए-मोहब्बत था कि मेरी क़ब्र पर
संग-दिल से संग-दिल भी फ़ातिहा देता गया
मोहम्मद हबीब हबीब
ग़ज़ल
'सफ़ीर' अब तक तो रूदाद-ए-मोहब्बत ख़ाम है तेरी
अभी तो आँख भी फ़र्त-ए-अलम से नम नहीं होती
मोहम्मद अब्बास सफ़ीर
ग़ज़ल
मोहब्बत से जो ख़ाली हो वो दिल बे-कार होता है
ख़ला में जाइए बैत-उल-ख़ला में कुछ नहीं रक्खा
खालिद इरफ़ान
ग़ज़ल
जिसे देखा जिसे पाया ग़रज़ का अपनी बंदा था
जहाँ मैं अब मज़ा बाक़ी नहीं ख़ालिस मोहब्बत का
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
फ़रेब-ए-अहद-ए-मोहब्बत का ज़ख़्म है ताज़ा
नशात-ए-इश्क़ से दिल लाला-ज़ार आज भी है