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ग़ज़ल
नर्म शगुफ़्ता चाँदनी हँसता हुआ कँवल कहूँ
ऐसा कोई सनम कहाँ जिस के लिए ग़ज़ल कहूँ
ख़लील-उर-रहमान राज़
ग़ज़ल
बरसों अश्कों से वुज़ू का सिलसिला करते रहे
हम नमाज़-ए-ज़िंदगी यूँ भी अदा करते रहे
ख़लील-उर-रहमान राज़
ग़ज़ल
वो दिल जिस को ख़याल-ए-मुर्सल-ए-मुख़्तार हो जाए
तजल्ली-गाह-ए-रहमत मतला-ए-अनवार हो जाए
ख़लील-उर-रहमान राज़
ग़ज़ल
वक़्त ने दिल की तबीअ'त में वफ़ा रक्खी है
कुल्फ़त-ए-आगही फिर उस की सज़ा रखी है
ख़लील-उर-रहमान राज़
ग़ज़ल
हर जगह बंदिश-ए-आदाब की पर्वा न करें
महरम-ए-राज़ से बेहतर है कि पर्दा न करें
ख़लील-उर-रहमान राज़
ग़ज़ल
रूह-ए-ज़माँ मकाँ मिले राज़-ए-अयाँ निहाँ मिले
कब से हूँ गर्म-ए-जुस्तुजू मंज़िल-ए-कुन-फ़काँ मिले
ख़लील-उर-रहमान राज़
ग़ज़ल
ख़लील-उर-रहमान राज़
ग़ज़ल
न नज़र की दीदा-वरी रही न जिगर की बे-जिगरी रही
मगर अहल-ए-दा'वा-ए-शौक़ से तिरी बरहम-ए-नाज़ भरी रही
ख़लील-उर-रहमान राज़
ग़ज़ल
जिस के पास यकजा हों दीन-ओ-दानिश-ओ-दौलत
ऐसे मर्द-ए-कामिल का आस्ताँ नहीं मिलता