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ग़ज़ल
मेरे जज़्बों के फ़ुसूँ में क़ैद वो होता हुआ
उस के लहजे की खनक मुझ पर असर करती हुई
जहाँगीर नायाब
ग़ज़ल
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
ज़ंजीर-ए-जुनूँ कुछ और खनक हम रक़्स-ए-तमन्ना देखेंगे
दुनिया का तमाशा देख चुके अब अपना तमाशा देखेंगे
नौशाद अली
ग़ज़ल
लहजे की उदासी कम होगी बातों में खनक आ जाएगी
दो-रोज़ हमारे साथ रहो चेहरे पे चमक आ जाएगी
अंजुम बाराबंकवी
ग़ज़ल
ये कैसी सरगोशी-ए-अज़ल साज़-ए-दिल के पर्दे हिला रही है
मिरी समाअत खनक रही है कि तेरी आवाज़ आ रही है