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ग़ज़ल
अभी तो इश्क़ बाक़ी है अधूरी है मोहब्बत भी
खनकना है अभी हाथों में तेरी चूड़ियाँ बन कर
अब्दुल मन्नान समदी
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
मिरा रहना तुम्हारे दर पे लोगों को खटकता है
अगर कह दो तो उठ जाऊँ जो रहम आए तो रहने दो
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
ज़ेर-ए-ज़मीं से आता है जो गुल सो ज़र-ब-कफ़
क़ारूँ ने रास्ते में लुटाया ख़ज़ाना क्या
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
मेरे जज़्बों के फ़ुसूँ में क़ैद वो होता हुआ
उस के लहजे की खनक मुझ पर असर करती हुई