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ग़ज़ल
जुदा हो कर भी इंशा की मोहब्बत उस के दिल में है
किसी पर ज़ुल्म होता है क़लंदर चीख़ उठता है
अर्पित शर्मा अर्पित
ग़ज़ल
हर इक ख़िश्त-ए-कुहन अफ़्साना-ए-देरीना कहती है
ज़बान-ए-हाल से टूटे खंडर फ़रियाद करते हैं