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ग़ज़ल
ये दैर-ए-कुहन क्या है अम्बार-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक
मुश्किल है गुज़र इस में बे-नाला-ए-आतिशनाक
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ख़स-ओ-ख़ाशाक भी कब के हैं भँवर से निकले
इक हमीं हैं कि नहीं नर्ग़ा-ए-शर से निकले
माज़िद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
शहर-ए-गुल के ख़स-ओ-ख़ाशाक से ख़ौफ़ आता है
जिस का वारिस हूँ उसी ख़ाक से ख़ौफ़ आता है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
ख़ुश-रंग किस क़दर ख़स-ओ-ख़ाशाक थे कभी
ज़र्रे भी ज़ेब-ओ-ज़ीनत-ए-अफ़्लाक थे कभी
अकबर अली खान अर्शी जादह
ग़ज़ल
ये जो तुम देख रहे हो ख़स-ओ-ख़ाशाक पे ख़ाक
इस से बढ़ कर है मिरी ख़्वाहिश-ए-सद-चाक पे ख़ाक
तबस्सुम सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
ख़ार-ओ-ख़स-ओ-ख़ाशाक तो जानें एक तुझी को ख़बर न मिले
ऐ गुल-ए-ख़ूबी हम तो अबस बदनाम हुए गुलज़ार के बीच