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ग़ज़ल
आप दरिया हैं तो फिर इस वक़्त हम ख़तरे में हैं
आप कश्ती हैं तो हम को पार होना चाहिए
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
वतन को कुछ नहीं ख़तरा निज़ाम-ए-ज़र है ख़तरे में
हक़ीक़त में जो रहज़न है वही रहबर है ख़तरे में
हबीब जालिब
ग़ज़ल
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
दोस्तों के साथ चलने में भी ख़तरे हैं हज़ार
भूल जाता हूँ हमेशा मैं सँभल जाने के बा'द
आलम ख़ुर्शीद
ग़ज़ल
ख़बर की थी गुलिस्तान-ए-मोहब्बत में भी ख़तरे हैं
जहाँ गिरती है बिजली हम उसी डाली पे जा बैठे
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है
बहुत ऊँची 'इमारत हर घड़ी ख़तरे में रहती है
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
परवेज़ शाहिदी
ग़ज़ल
ना-ख़ुदाओं ने तो ख़ुश-फ़हमियाँ बख़्शी हैं फ़क़त
मैं हूँ ख़तरे में ये तूफ़ाँ ही बताता है मुझे
शारिक़ कैफ़ी
ग़ज़ल
उफ़ निकल जाती है ख़तरे ही का मौक़ा क्यूँ न हो
हुस्न से बेताब हो जाना मिरी फ़ितरत में है