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ग़ज़ल
जाने कहाँ से इतने परिंदे शाख़ों पर आ जाते हैं
खट्टा-मीठा अलबेला रस जूँ-ही फल में आता है
रेहाना नवाब
ग़ज़ल
पीत के मीठे मधुर मनोहर बोल लिए आता है कोई
साँझ का टीला बोला खिड़की दरवाज़े चौखट जागे
परवेज़ रहमानी
ग़ज़ल
प्यार के खट्टे-मीठे नामे वो लिखती है मैं पढ़ता हूँ
हर शब को जाने-अनजाने वो लिखती है मैं पढ़ता हूँ
बशीर दादा
ग़ज़ल
खाता है कितना ग़म कोई पीता है कितनी मय
'राजे' ये अपने ज़र्फ़ पे दार-ओ-मदार है
माया खन्ना राजे बरेलवी
ग़ज़ल
मरियम फ़ातिमा
ग़ज़ल
हश्र में आख़िर उसे भी छोड़ते ही बन पड़ी
ख़ाना-ए-मदफ़न भी गोया अपना काशाना न था
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
ज़ीस्त में मंज़र-ए-फ़ना उस ने दिखा दिया कि यूँ
लिख के हमारे नाम को ख़ुद ही मिटा दिया कि यूँ
मलिका आफ़ाक़ ज़मानी बेगम
ग़ज़ल
ख़ुशी से खेल गए हम क़ज़ा के दामन पर
कि हर्फ़ आने न पाए वफ़ा के दामन पर
हाजी शफ़ीउल्लाह शफ़ी बहराइची
ग़ज़ल
तेरे लुत्फ़-ओ-करम से जो दामन में मेरे आया है
सीने से वो फूल लगाया ख़ार वो मैं ने चूमा है