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ग़ज़ल
हवस मिटती नहीं ख़ौफ़-ए-ख़ुदा पामाल रखता है
अजब सरकश है दिल मेरा कि हस्ब-ए-हाल रखता है
सिद्दीक़ मुजीबी
ग़ज़ल
'असग़र' की कुछ न पूछो मय-ख़ाना में पड़ा है
इस बंदा-ए-ख़ुदा को ख़ौफ़-ए-ख़ुदा नहीं है
असग़र निज़ामी
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
साहिब-ए-सिद्क़ हूँ मैं ख़ौफ़-ए-ख़ुदा रखता हूँ
अपने होंटों पे सदा हक़ की सदा रखता हूँ
शौक़ जालंधरी
ग़ज़ल
दिल में शर्मिंदा हैं एहसास-ए-ख़ता रखते हैं
हम गुनहगार हैं पर ख़ौफ़-ए-ख़ुदा रखते हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
ख़ौफ़-ए-ख़ुदा में उम्र गुज़ारी तो क्या मिला
कुछ दिन जिएँगे ख़ौफ़-ए-ख़ुदा के बग़ैर भी
असअ'द बदायुनी
ग़ज़ल
होगा पुर-नूर सियह-ख़ाना हमारे दिल का
इस में तुम ग़ौस-ए-ख़ुदा को ज़रा आ जाने दो
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
दाग़ बन कर तो रहा दामन-ए-क़ातिल पे मगर
बू-ए-ख़ूँ बहर-ए-ख़ुदा बू-ए-वफ़ा हो जाना
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
ये इश्क़ 'जमीला' का ऐ ख़िज़्र-ए-रह-ए-उल्फ़त
महबूब के जल्वे को असरार-ए-ख़ुदा जाना