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ग़ज़ल
दे के ग़म ये आप ने क्या मुझ पे एहसाँ कर दिया
दोनों 'आलम की मसर्रत से गुरेज़ाँ कर दिया
ख़ालिद आज़मी
ग़ज़ल
एक ही माँ की सब औलादें मानो झगड़ा करती हैं
शहर-ए-दिल की गलियों में जब यादें खेला करती हैं
अनंत गुप्ता
ग़ज़ल
उठा ख़ेमा यहाँ से कूच कर आहिस्ता आहिस्ता
अभी तो ख़ैर मुमकिन है सफ़र आहिस्ता आहिस्ता
सना गोरखपुरी
ग़ज़ल
कुछ ग़म-ए-जानाँ कुछ ग़म-ए-दौराँ दोनों मेरी ज़ात के नाम
एक ग़ज़ल मंसूब है उस से एक ग़ज़ल हालात के नाम
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ग़ज़ल
डूबने वाले भी तन्हा थे तन्हा देखने वाले थे
जैसे अब के चढ़े हुए थे दरिया देखने वाले थे
सलीम कौसर
ग़ज़ल
दिल ने कहा था काफ़ी पहले इश्क़ का इक अफ़्साना लिख
बेगानों को अपना लिख दे अपनों को बेगाना लिख
दानिश असरी
ग़ज़ल
अरसा-ए-ख़्वाब से उठ हल्क़ा-ए-ता'बीर में आ
गुम-शुदा रो'ब-ए-जुनूँ कासा-ए-तश्हीर में आ
नदीम सिरसीवी
ग़ज़ल
दिल भी दाग़-ए-नक़्श-ए-कुहन से बुझा हुआ था
चाँद के गिर्द भी इक हाला सा बना हुआ था
हसन शाहनवाज़ ज़ैदी
ग़ज़ल
जाते जाते राह में उस ने मुँह से उठाया जूँही पर्दा
राह के जाने वालों ने भी मुँह उस का फिर फिर के देखा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
क्यूँ ख़राबात में लाफ़-ए-हमा-दानी वा'इज़
कौन सुनता है तिरी हर्ज़ा-बयानी वा'इज़