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ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
आँखों देखी क्या बतलाएँ हाल अजब कुछ देखा है
दुख की खेती कितनी हरी और सुख का जैसे काल कहो
सय्यद शकील दस्नवी
ग़ज़ल
तालिब बाग़पती
ग़ज़ल
वहाँ बरसों तलक फूलों की खेती होती रहती है
बरस जाती हैं जिन ख़ित्तों पे जा कर बदलियाँ मेरी
ग़ौसिया ख़ान सबीन
ग़ज़ल
दिल की खेती सूख रही है कैसी ये बरसात हुई
ख़्वाबों के बादल आते हैं लेकिन आग बरसती है