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ग़ज़ल
दिगर-गूँ है जहाँ तारों की गर्दिश तेज़ है साक़ी
दिल-ए-हर-ज़र्रा में ग़ोग़ा-ए-रुस्ता-ख़े़ज़ है साक़ी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
है सवा नेज़े पे उस के क़ामत-ए-नौ-ख़ेज़ से
आफ़्ताब-ए-सुब्ह-ए-महशर है गुल-ए-दस्तार-ए-दोस्त
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
मुहीत-ए-इश्क़ की हर मौज तूफ़ाँ-ख़ेज़ ऐसी है
वो हैं गिर्दाब में जो दामन-ए-साहिल में रहते हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
ऐ हल्क़ा-ए-दरवेशाँ वो मर्द-ए-ख़ुदा कैसा
हो जिस के गरेबाँ में हंगामा-ए-रुस्ता-ख़ेज़
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
दिखाऊँ तुझ को मंज़र क्या गुलों की पाएमाली का
चमन से पूछ ले नौ-ख़ेज़ अरमानों पे क्या गुज़री
सिकंदर अली वज्द
ग़ज़ल
जुम्बिश-ए-अबरू-ओ-मिज़्गाँ कै ख़ुनुक साए में
आतिश-अफ़रोज़ जुनूँ-ख़ेज़ शरर-बार आँखें