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ग़ज़ल
तमन्ना दर्द-ए-दिल की हो तो कर ख़िदमत फ़क़ीरों की
नहीं मिलता ये गौहर बादशाहों के ख़ज़ीनों में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अगर जन्नत की चाहत है तो ख़िदमत शर्त है माँ की
अगर माँ रूठ जाती है तो जन्नत छीन लेती है
आलम निज़ामी
ग़ज़ल
रोज़ इक ताज़ा क़सीदा नई तश्बीब के साथ
रिज़्क़ बर-हक़ है ये ख़िदमत नहीं होगी हम से
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
हम रहे याँ तक तिरी ख़िदमत में सरगर्म-ए-नियाज़
तुझ को आख़िर आश्ना-ए-नाज़-ए-बेजा कर दिया
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
ताबिंदा तारों का तोहफ़ा सुब्ह की ख़िदमत में पहुँचा
रात ने चाँद की नज़्र किए जो तारे कम चमकीले थे
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
एक के घर की ख़िदमत की और एक के दिल से मोहब्बत की
दोनों फ़र्ज़ निभा कर उस ने सारी उम्र इबादत की
ज़ेहरा निगाह
ग़ज़ल
अदब ता'लीम का जौहर है ज़ेवर है जवानी का
वही शागिर्द हैं जो ख़िदमत-ए-उस्ताद करते हैं
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
मैं ने कब दावा किया था सर-ब-सर बाक़ी हूँ मैं
पेश-ए-ख़िदमत हों तुम्हारे जिस क़दर बाक़ी हूँ मैं
ज़फ़र इक़बाल
ग़ज़ल
रोज़ ओ शब रहता है तेरी याद में आशिक़ का दिल
गो मुक़स्सिर है तिरी ख़िदमत से गो म'अज़ूर है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
किस तरह हुस्न-ए-ज़बाँ की हो तरक़्क़ी 'वहशत'
मैं अगर ख़िदमत-ए-उर्दू-ए-मुअ'ल्ला न करूँ