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ग़ज़ल
दिल की क़ीमत घट जाती है इज़हार-ए-जज़्बात के बाद
सूना सूना घर का आँगन लगता है बारात के बाद
वसी सीतापुरी
ग़ज़ल
मुझ को दुख देने का ज़िम्मा था मिरे अपनों का पर
वक़्त पड़ने पर ये ख़िदमत ग़ैर भी करते रहे
सुहैल शाद
ग़ज़ल
मज़रआ नेकी है अहल-ए-ज़ौक़-ए-ख़िदमत के लिए
घर ख़ुदा का है फ़िदाइयान-ए-रहमत के लिए
मोहन सिंह दीवाना
ग़ज़ल
एक के घर की ख़िदमत की और एक के दिल से मोहब्बत की
दोनों फ़र्ज़ निभा कर उस ने सारी उम्र इबादत की
ज़ेहरा निगाह
ग़ज़ल
दिल के कहने पे चलूँ अक़्ल का कहना न करूँ
मैं इसी सोच में हूँ क्या करूँ और क्या न करूँ
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
हम को ख़याल-ए-ख़िदमत-ए-अह्ल-ए-जहाँ तो है
ताक़त नहीं है पाँव में मुँह में ज़बाँ तो है
मुसव्विर लखनवी
ग़ज़ल
बग़ैर ख़ूबी-ओ-ख़िदमत बशर अच्छे नहीं लगते
न जिन में फूल फल हों वो शजर अच्छे नहीं लगते