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ग़ज़ल
तुम्हारे नाम से सब लोग मुझ को जान जाते हैं
मैं वो खोई हुई इक चीज़ हूँ जिस का पता तुम हो
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
कोई मर कर तो देखे इम्तिहाँ-गाह-ए-मोहब्बत में
कि ज़ेर-ए-ख़ंजर-ए-क़ातिल हयात-ए-जावेदाँ तक है
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
तकल्लुफ़ क्या जो खोई जान-ए-शीरीं फोड़ कर सर को
जो थी ग़ैरत तो फिर ख़ुसरव से होता कोहकन बिगड़ा