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ग़ज़ल
पटख़ देता है साहिल पर समुंदर मुर्दा जिस्मों को
ज़ियादा देर तक अंदर के खोट अंदर नहीं रहते
नाज़ ख़यालवी
ग़ज़ल
वही नक़्स है वही खोट है वही ज़र्ब है वही चोट है
वही सूद है वही फ़ाएदा तुम्हें याद हो कि न याद हो
इस्माइल मेरठी
ग़ज़ल
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
संग-ज़नी ओ त'अना-ज़नी इस दौर का शेवा है यारो
अपने दिल में खोट नहीं जब दुनिया से घबराना क्या
अहमद ज़िया
ग़ज़ल
ज़र्द ज़ाहिद है तो क्या खोट अभी है दिल में
'ज़ौक़' उस ज़र को कसौटी पे कसा लगता है