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ग़ज़ल
सदियों सदियों वही तमाशा रस्ता रस्ता लम्बी खोज
लेकिन जब हम मिल जाते हैं खो जाता है जाने कौन
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
जिस जिप्सी का ज़िक्र है तुम से दिल को उसी की खोज रही
यूँ तो हमारे शहर में अक्सर मेला लगा निगारों का
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ख़ुश्बू की दीवार के पीछे कैसे कैसे रंग जमे हैं
जब तक दिन का सूरज आए उस का खोज लगाते रहना
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
कौन लगाए खोज किसी का ख़ुद-ग़र्ज़ी के इस जंगल में
मिलता है इंसान यहाँ भी लेकिन एक हज़ार के पीछे
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
ये दोराहा है चलो तुम रंग-ओ-बू की खोज में
हम चले सहरा-ए-दिल की बाग़बानी के लिए
सज्जाद बाक़र रिज़वी
ग़ज़ल
एक जहाँ की खोज में अपने प्यार की नगरी छोड़ आए
और ज़माना ये समझा हम प्यार की बाज़ी हारे हैं