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ग़ज़ल
तुझ पे मैं खोलूँगी इक दिन सभी औराक़-ए-जमाल
तू अभी हुस्न के अबवाब से कम वाक़िफ़ है
नादिया अंबर लोधी
ग़ज़ल
तन्हाई के झूले खोलेंगे हर बात पुरानी भूलेंगे
आईने से तुम घबराओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जाएगा
सईद राही
ग़ज़ल
आज़ादी का दरवाज़ा भी ख़ुद ही खोलेंगी ज़ंजीरें
टुकड़े टुकड़े हो जाएँगी जब हद से बढ़ेंगी ज़ंजीरें
हफ़ीज़ मेरठी
ग़ज़ल
जवाब इस का सही देगा कोई तो इस को खोलूँगा
बना कर एक गठरी मैं ने रखी है सवालों की
अर्पित शर्मा अर्पित
ग़ज़ल
मैं रात का भेद तो खोलूँगा जब नींद न मुझ को आएगी
क्यूँ चाँद सितारे आते हैं हर रात मुझे समझाने को
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
मिरे आँसू तिरी बेदाद का पर्दा न खोलेंगे
अबस ये बद-गुमानी है मैं कब रोया कहाँ रोया