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ग़ज़ल
खोने और पाने का जीवन नाम रखा है हर कोई जाने
उस का भेद कोई न देखा क्या पाना क्या खोना होगा
मीराजी
ग़ज़ल
कभी पा के तुझ को खोना कभी खो के तुझ को पाना
ये जनम जनम का रिश्ता तिरे मेरे दरमियाँ है
बशीर बद्र
ग़ज़ल
तिरे होंटों के सहरा में तिरी आँखों के जंगल में
जो अब तक पा चुका हूँ उस को खोना चाहता हूँ मैं
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
ऐसी यादों में घिरे हैं जिन से कुछ हासिल नहीं
और कितना वक़्त उन यादों में खोना है अभी
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
रो-रो के इन्हीं राहों में खोना पड़ा इक अपने को
हँस-हँस के इन्हीं राहों में अपनाया था बेगाने को
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
गुल-ए-रंगीं ये कहता है कि खिलना हुस्न खोना है
मगर ग़ुंचा समझता है निखरता जा रहा हूँ मैं