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ग़ज़ल
अंधेरा ज़ेहन का सम्त-ए-सफ़र जब खोने लगता है
किसी का ध्यान आता है उजाला होने लगता है
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
खोने और पाने का जीवन नाम रखा है हर कोई जाने
उस का भेद कोई न देखा क्या पाना क्या खोना होगा
मीराजी
ग़ज़ल
इतनी देर में उजड़े दिल पर कितने महशर बीत गए
जितनी देर में तुझ को पा कर खोने का इम्कान हुआ
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
इसे वक़्त का जब्र कहिए कि बेचारगी जिस्म ओ जाँ की
मकाँ खोने वालों को डर है कि अब ला-मकाँ खो न जाए
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
ख़ुदा से गर तुझे माँगा नहीं होता दु'आओं में
तुझे खोने का फिर हम को ज़रा भी ग़म नहीं होता