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ग़ज़ल
वो मेरी ज़िंदगी भर की कमाई ही सही लेकिन
मैं क्या करता वही सिक्का अगर खोटा निकल आया
भारत भूषण पन्त
ग़ज़ल
खोल रहे हैं मूँद रहे हैं यादों के दरवाज़े लोग
इक लम्हे में खो बैठे हैं सदियों के अंदाज़े लोग
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
ऐसे भी कुछ लोग हैं जो दिन भर की कमाई खो देते हैं
फिर झट पट करते तारों की छाँव में बैठे रो देते हैं