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ग़ज़ल
लिया उन का सहारा डूबने वालों ने ऐ 'बरतर'
जिन्हें नाकारा हम समझे वही तिनके अहम निकले
बरतर मदरासी
ग़ज़ल
क्या ख़ूब निभाई शर्त-ए-वफ़ा 'बरतर' को अकेला छोड़ गए
रू-पोश हुए हो ज़ेर-ए-लहद अब जल्वा-नुमाई क्या होगी
बरतर मदरासी
ग़ज़ल
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
दिल में शर्मिंदा हैं एहसास-ए-ख़ता रखते हैं
हम गुनहगार हैं पर ख़ौफ़-ए-ख़ुदा रखते हैं