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ग़ज़ल
जो अहल-ए-फ़क़्र-ओ-शाह कुम्हारे के हैं मुरीद
पाले हैं इन सभों ने कबूतर कुमहारिए
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
नींद का हल्का गुलाबी सा ख़ुमार आँखों में था
यूँ लगा जैसे वो शब को देर तक सोया नहीं
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज
मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं