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ग़ज़ल
ये सब ख़ुश-पोश चेहरे हो चुके हैं मुन्कशिफ़ मुझ पर
मैं उन के दरमियाँ क्यूँ जामा-ए-महशर में रहता हूँ
खुर्शीद अकबर
ग़ज़ल
तेरे ख़ुश-पोश फ़क़ीरों से वो मिलते तो सही
जो ये कहते हैं वफ़ा पैरहन-ए-चाक में है
सय्यद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
ख़िश्त पुश्त-ए-दस्त-ए-इज्ज़ ओ क़ालिब आग़ोश-ए-विदा'अ
पुर हुआ है सैल से पैमाना किस ता'मीर का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
'ख़ुसरव' सफ़ीर-ए-वक़्त से ग़म का मिज़ाज पूछ
माज़ी की अज़्मतों का ख़ुशी का पता न माँग
अमीर अहमद ख़ुसरव
ग़ज़ल
तेरे मिलने की ख़ुशी में कोई नग़्मा छेड़ूँ
या तिरे दर्द-ए-जुदाई का गिला पेश करूँ