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ग़ज़ल
ज़ाहिद-ए-ख़ुश्क-ओ-ख़ुनुक से कब हो सोहबत उन की गर्म
आतिश-ए-तर से 'मुहिब' जिन का लबालब ज़र्फ़ है
वलीउल्लाह मुहिब
ग़ज़ल
ऐ ख़ुशा-वक़्ते कि शोख़-ए-तरह-दार आ ही गया
हाँ वो जान-ए-मय-कदा मस्ताना-वार आ ही गया
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
ग़ज़ल
बोसा माँगा तो कहा शुक्र-ए-ख़ुदा अच्छा हूँ
बात क्या जल्द उड़ाई है इलाही तौबा