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ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
'ग़ालिब' मिरे कलाम में क्यूँकर मज़ा न हो
पीता हूँ धोके ख़ुसरव-ए-शीरीं-सुख़न के पाँव
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मिरे शाह-ए-सुलैमाँ-जाह से निस्बत नहीं 'ग़ालिब'
फ़रीदून ओ जम ओ के ख़ुसरव ओ दाराब ओ बहमन को
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तकल्लुफ़ क्या जो खोई जान-ए-शीरीं फोड़ कर सर को
जो थी ग़ैरत तो फिर ख़ुसरव से होता कोहकन बिगड़ा
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
तकल्लुफ़-बरतरफ़ फ़रहाद और इतनी सुबु-दस्ती
ख़याल आसाँ था लेकिन ख़्वाब-ए-ख़ुसरव ने गिरानी की
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
'ख़ुसरव' थे उस के हल्क़ा-बगोशों में आप भी
हाथों में डाले हाथ अभी कल की बात है
फ़िरोज़ नातिक़ ख़ुसरो
ग़ज़ल
'ख़ुसरव' की आँखों से कभी देखे अगर तुम को कोई
अहवाल होगा उस का क्या हज़रत निज़ामुद्दीन-जी
शहरयार
ग़ज़ल
ख़ुसरव से तेशा बोला जो चाटूँ न तेरा ख़ूँ
शीरीं न होवे ख़ून-ए-सर-ए-कोह-कन मुझे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
ख़ुसरव-ए-ऐश-ए-वस्ल-ए-यार जाँ-कनी और कोहकन
अपना जिगर तो ख़ूँ हुआ इश्क़ के इम्तियाज़ में
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
शीरीं का ख़्वाहाँ हश्र में ख़ुसरव भी है फ़रहाद भी
खींचेंगे दोनों पैरहन एक इस तरफ़ एक उस तरफ़
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
'ख़ुसरव' सफ़ीर-ए-वक़्त से ग़म का मिज़ाज पूछ
माज़ी की अज़्मतों का ख़ुशी का पता न माँग
अमीर अहमद ख़ुसरव
ग़ज़ल
तू ख़ुसरव-ए-ख़ूबाँ है कि ले हिन्द सीं ता रोम
पहुँची है तिरे हुस्न-ए-जहाँगीर की आवाज़