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ग़ज़ल
सुनता जो है कोई मिरे ग़ुंचा-दहन की बात
भाती नहीं है उस को किसी गुल-बदन की बात
अब्दुल मजीद ख़्वाजा शैदा
ग़ज़ल
अगर नहीं क़स्द ऐ ज़ालिम मिरे दिल के सताने का
सबब क्या है तुझे मुझ से नमाने से बहाने का
अब्दुल वहाब यकरू
ग़ज़ल
न पूछ ऐ हम-नफ़स अफ़्साना-ए-रंज-ओ-मेहन मेरा
न है बस में ज़बाँ मेरी न क़ाबू में दहन मेरा
अब्दुर्रशीद ख़ान कैफ़ी महकारी
ग़ज़ल
म्याँ क्या हो गर अबरू-ए-ख़मदार को देखा
क्यूँ मेरी तरफ़ देख के तलवार को देखा
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
अब्दुर्रशीद ख़ान कैफ़ी महकारी
ग़ज़ल
कहाँ थे शब इधर देखो हया क्यूँ है निगाहों में
अगर मंज़ूर है रख लो मुझे झूटे गवाहों में
अब्दुल रहमान रासिख़
ग़ज़ल
चुटकियाँ ली ही कि उठ बैठ जो मर जाए कोई
ऐ सितमगर तिरे हाथों से किधर जाए कोई
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
जब दाँत खोल कर लब-ए-साहिल वो हँस पड़े
दरिया में मारे शर्म के गौहर पलट गया
अब्दुल मजीद ख़्वाजा शैदा
ग़ज़ल
दोश-ब-दोश दोश था मुझ से बुत-ए-करिश्मा-कोश
पर्दा दर ख़ियाम-ए-अक़्ल-ए-रख़्ना-गर हरीम-ए-होश