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ग़ज़ल
लगने न दे बस हो तो उस के गौहर-ए-गोश को बाले तक
उस को फ़लक चश्म-ए-मह-ओ-ख़ुर की पुतली का तारा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
ख़ूँ है दिल ख़ाक में अहवाल-ए-बुताँ पर या'नी
उन के नाख़ुन हुए मुहताज-ए-हिना मेरे बा'द
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
लियाक़त अली आसिम
ग़ज़ल
दर-ख़ुर-ए-क़हर-ओ-ग़ज़ब जब कोई हम सा न हुआ
फिर ग़लत क्या है कि हम सा कोई पैदा न हुआ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
अफ़्सोस कि दंदाँ का किया रिज़्क़ फ़लक ने
जिन लोगों की थी दर-ख़ुर-ए-अक़्द-ए-गुहर अंगुश्त
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नहीं है ज़ख़्म कोई बख़िये के दर-ख़ुर मिरे तन में
हुआ है तार-ए-अश्क-ए-यास रिश्ता चश्म-ए-सोज़न में
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जादा-ए-रह ख़ुर को वक़्त-ए-शाम है तार-ए-शुआअ'
चर्ख़ वा करता है माह-ए-नौ से आग़ोश-ए-विदा'अ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नादीदा मंज़रों से तराशे हैं ख़्वाब ज़ार
कब दर-ख़ुर-ए-निगह कोई मंज़र है दीदनी