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ग़ज़ल
किस ख़ता पर ये उठाना पड़ी रातों की सलीब
हम ने देखा था अभी ख़्वाब-ए-सहर ही कितना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
ता-ब-कय शौकत-ए-अज्दाद पे ये नाज़-ओ-ग़ुरूर
ख़्वाब-ए-ग़फ़लत से उठो वक़्त के तेवर देखो
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
'शान' अब हम को तो अक्सर शब-ए-तन्हाई में
नींद आती नहीं और ख़्वाब नज़र आते हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
दमक उठी है फ़ज़ा माहताब-ए-ख़्वाब के साथ
धड़क रहा है ये दिल किस रबाब-ए-ख़्वाब के साथ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
अभी महल के दर-ओ-बाम ना-मुकम्मल हैं
ये किस ने ख़्वाब से आ कर जगा दिया मुझ को
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
क़ब्र में सोएँगे आराम से अब ब'अद-ए-फ़ना
आएगा ख़्वाब-ए-अदम दीदा-ए-बेदार के पास