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ग़ज़ल
अदा-शनास तिरा बे-ज़बाँ नहीं होता
कहे वो किस से कोई नुक्ता-दाँ नहीं होता
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
न देखूँगा हसीनों को अरे तौबा न देखूँगा
तक़ाज़ा लाख तू कर ऐ दिल-ए-शैदा न देखूँगा
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
पस-ए-पर्दा तुझे हर बज़्म में शामिल समझते हैं
कोई महफ़िल हो हम उस को तिरी महफ़िल समझते हैं
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
वो मस्त-ए-नाज़ आता है ज़रा होश्यार हो जाना
यहीं देखा गया है बे-पिए सरशार हो जाना
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
दिल-रुबा पहलू से अब उठ कर जुदा होने को है
क्या ग़ज़ब है क्या क़यामत है ये क्या होने को है
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
हर चीज़ में अक्स-ए-रुख़-ए-ज़ेबा नज़र आया
आलम मुझे सब जल्वा ही जल्वा नज़र आया
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
इक हसीं को दिल दे कर क्या बताएँ क्या पाया
लज़्ज़त-ए-फ़ना चक्खी ज़ीस्त का मज़ा पाया