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ग़ज़ल
मक़ाम-ए-गुफ़्तुगू क्या है अगर मैं कीमिया-गर हूँ
यही सोज़-ए-नफ़स है और मेरी कीमिया क्या है
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
आदम-ओ-ज़ात-ए-किब्रिया कर्ब में हैं जुदा जुदा
क्या कहूँ उन का माजरा जो भी है इम्तिहाँ में है
जौन एलिया
ग़ज़ल
ख़ालिद नदीम शानी
ग़ज़ल
'मरकज़'-ए-जुमला-काएनात मज़हर-ए-ज़ात-ए-किब्रिया
तेरे सिवा नहीं हुआ बहर-ए-ख़ुदा तू कौन है
यासीन अली ख़ाँ मरकज़
ग़ज़ल
इरफ़ान-ए-ग़म से नफ़्स का इरफ़ाँ हुआ नसीब
सीढ़ी ये पहली मा'रिफ़त-ए-किब्रिया की है
रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी
ग़ज़ल
वो करीम है वो रहीम है वो फ़हीम है वही किब्रिया
बस उसी की शान अज़ीम है बस उसी का आली मक़ाम है
जूलियस नहीफ़ देहलवी
ग़ज़ल
इक झलक दिखला के अपनी किस अदा से कह गया
जिस को देखा वो भी शान-ए-किब्रिया थी मैं न था
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
आलम-ए-इम्काँ में दुनिया की हवा थी मैं न था
जल्वा-आरा सिर्फ़ ज़ात-ए-किब्रिया थी मैं न था
क़ैसर निज़ामी
ग़ज़ल
'जमीला' आलिमों से साफ़ कह दे तुझ को डर किस का
मकान-ए-दिल मक़ाम-ए-किबरिया है ला-मकाँ कैसा