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ग़ज़ल
इक खेल मुसलसल गर्दिश का देखा है हम ने गुलशन में
फूलों का खिल कर मुरझाना और कलियों की किलकारी भी
आज़िम कोहली
ग़ज़ल
मैं घर आ कर ज़माने की थकन सब भूल जाता हूँ
अजब राहत मिरी बच्ची की किलकारी में रक्खी है
मज़हर मुजाहिदी
ग़ज़ल
सरापा हुस्न-ए-समधन गोया गुलशन की कियारी है
परी भी अब तो बाज़ी हुस्न में समधन से मारी है