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ग़ज़ल
कभी नौ-बहार बन कर हो चमन चमन में रक़्साँ
कभी कोएलों के लब पर कभी गुल से आश्कारा
इफ़्फ़त ज़ेबा काकोरवी
ग़ज़ल
ख़ाल-ए-मुश्कीं ने दिल ऐसा ही जलाया है कि बस
कोएलों पर भी ये धोका है कि अंगारे हैं
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
आमिर अमीर
ग़ज़ल
सरज़द हम से बे-अदबी तो वहशत में भी कम ही हुई
कोसों उस की ओर गए पर सज्दा हर हर गाम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
एक ये दिन जब सारी सड़कें रूठी रूठी लगती हैं
एक वो दिन जब आओ खेलें सारी गलियाँ कहती थीं
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
समझते ही नहीं नादान कै दिन की है मिल्किय्यत
पराए खेतों पे अपनों में झगड़ा होने लगता है