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ग़ज़ल
किसी को कोसते क्यूँ हो दुआ अपने लिए माँगो
तुम्हारा फ़ाएदा क्या है जो दुश्मन का ज़रर होगा
आग़ा अकबराबादी
ग़ज़ल
कोसते क्या हो अभी होते हैं हम शादी-ए-मर्ग
गर मिले दफ़्न को कूचे में ज़मीं थोड़ी सी
निज़ाम रामपुरी
ग़ज़ल
अब मिरी लाश पर हुज़ूर मौत को कोसते तो हैं
आप को ये भी होश है किस ने किसे मिटा दिया
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
खेते किस वास्ते कश्ती को हो साहिल साहिल
न यहाँ ख़तरा-ए-तूफ़ाँ हो ज़रूरी तो नहीं
जयकृष्ण चौधरी हबीब
ग़ज़ल
जिसे तुम कोसते हो उम्र उस की और बढ़ती है
तुम्हें सब कुछ तो आया कोसना अब तक नहीं आया
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
कोसते हैं वो बुरी तरह जो कहता हूँ 'रियाज़'
रात-भर आज भी होती रही कल रात की बात