aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "koft"
हो गई दूर अन-गिनत वीराँ गुज़रगाहों की कोफ़्तएक बस्ती से गुज़रने में वो आसानी हुई
ये रात खाँसते रहते हैं कोफ़्त होती हैबहू ने सब में जताया तो बाप रोने लगा
कोफ़्त से जान लब पे आई हैहम ने क्या चोट दिल पे खाई है
अब कोफ़्त से हिज्राँ की जहाँ तन पे रखा हाथजो दर्द-ओ-अलम था सो कहे तू कि वहीं था
थामो अब क़ब्ज़ा-ए-शमशीर ऐ 'रिन्द'कोफ़्त पर कोफ़्त उठाया न करो
हिज्र की कोफ़्त जो खींचे हैं उन्हीं से पूछोदिल दिए जाते हैं जी अपने मले जाते हैं
निकला था कहीं वो गुल-ए-नाज़ुक शब-ए-मह मेंसो कोफ़्त नहीं जाती है रुख़्सार से अब तक
हिज्राँ की कोफ़्त खींचे बे-दम से हो चले हैंसर मार मार या'नी अब हम भी सो चले हैं
कोफ़्त चेहरे पे शब की ज़ाहिर हैक्यूँ-के कहिए कि कुछ वचंता नहिं
आते जाते मरहले ही उन्सियत को खा गएकोफ़्त में गुज़रे यक़ीनन तीरगी है ज़िंदगी
हर-वक़्त है कोफ़्त अपने दिल कोरह रह कर सीना कूटते हैं
बे पिए कोई क्या ग़ज़ल छेड़ेकोफ़्त में शा'इरी नहीं होती
इसी लिए है मुझे कोफ़्त आश्नाई सेमैं जानता था जिन्हें अजनबी से निकले हैं
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