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ग़ज़ल
आज वफ़ा की राह 'मुसाफ़िर' धुँदली धुँदली लगती है
कोहरा जिस ने बरसाया है उस बादल की बात करें
विलास पंडित मुसाफ़िर
ग़ज़ल
कोहरा ओढ़े टहल रही थी झील पे गहरी ख़ामोशी
फिर सूरज ने धूप बिछाई तब कुछ ठहरी ख़ामोशी
ख़्वाजा तारिक़ उस्मानी
ग़ज़ल
ना-मुरादी का है कोहरा सा दिल-ओ-ज़ेहन पे वो
कोई ख़्वाहिश सी तो निकली है मगर क्या निकली