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ग़ज़ल
मिरे दिल के किसी कोने में इक मासूम सा बच्चा
बड़ों की देख कर दुनिया बड़ा होने से डरता है
राजेश रेड्डी
ग़ज़ल
आमिर अमीर
ग़ज़ल
मैं भी उन्हें पहचान रहा हूँ ग़ौर से देखो बादा-कशो
शायद शैख़-ए-हरम बैठे हैं वो जो कोने वाले हैं
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
सोचा ये था वक़्त मिला तो टूटी चीज़ें जोड़ेंगे
अब कोने में ढेर लगा है बाक़ी कमरा ख़ाली है
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
ग़ज़ल
फ़र्क़ नहीं पड़ता हम दीवानों के घर में होने से
वीरानी उमड़ी पड़ती है घर के कोने कोने से
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
ग़ज़ल
धूप हुई तो आँचल बन कर कोने कोने छाई अम्माँ
सारे घर का शोर-शराबा सूना-पन तन्हाई अम्माँ
आलोक श्रीवास्तव
ग़ज़ल
हो भी जाए दिल अगर ख़ाली ख़याल-ओ-ख़्वाब से
फिर भी इक कोने में कुछ बे-ख़्वाबियाँ रह जाएँगी