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ग़ज़ल
अब तो उस सूने माथे पर कोरे-पन की चादर है
अम्मा जी की सारी सज-धज सब ज़ेवर थे बाबू जी
आलोक श्रीवास्तव
ग़ज़ल
जीवन के कोरे काग़ज़ पर जीना होगा तहरीरों में
उजले पन्नों पर स्याही से करनी होगी हर्फ़-आराई
दीप्ति मिश्रा
ग़ज़ल
लम्स के इस कोरे तालाब में चाँद का पहला अक्स तुम्ही हो
कैसे नूर-जहानी सुर में किस किस से वो कहता होगा
अहमद फ़क़ीह
ग़ज़ल
वो था कुछ उस के बच्चे थे कुछ साथ थे और कुछ घर वाले
आईने से कोरे दिल वाले कोहसार से ऊँचे सर वाले