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ग़ज़ल
ये हवा ये रात ये चाँदनी तिरी एक अदा पे निसार है
मुझे क्यूँ न हो तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में बहार है
राजेन्द्र कृष्ण
ग़ज़ल
मिरे दिल के दाग़ ख़ुदा रखे रह-ए-ग़म में जल्वा-कुनाँ रहे
कभी चाँदनी की तरह खिले कभी बन के काहकशाँ रहे
बहार बर्नी
ग़ज़ल
ये लम्हा ज़ीस्त का है बस आख़िरी है और मैं हूँ
हर एक सम्त से अब वापसी है और मैं हूँ
कृष्ण बिहारी नूर
ग़ज़ल
ता-चंद उस के जौर के सदमे उठाए दिल
पत्थर नहीं है सीने में जो ताब लाए दिल