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ग़ज़ल
कहूँ किस से ब-जुज़ तेरे ख़ुदाया आरज़ू दिल की
मुराद अपनी हमेशा तुझ से ही बस मैं ने हासिल की
महाराजा सर किशन परसाद शाद
ग़ज़ल
ज़ाद-ए-रह भी नहीं बे-रख़्त-ए-सफ़र जाते हैं
सख़्त हैरत है कि ये लोग किधर जाते हैं