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ग़ज़ल
दम-ए-तौफ़ किरमक-ए-शम्अ ने ये कहा कि वो असर-ए-कुहन
न तिरी हिकायत-ए-सोज़ में न मिरी हदीस-ए-गुदाज़ में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
हर इक ख़िश्त-ए-कुहन अफ़्साना-ए-देरीना कहती है
ज़बान-ए-हाल से टूटे खंडर फ़रियाद करते हैं
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
किस ने कहा कि टूट गया ख़ंजर-ए-फ़रंग
सीने पे ज़ख़्म-ए-नौ भी है दाग़-ए-कुहन के साथ
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
दिल-ए-मुर्दा दिल नहीं है इसे ज़िंदा कर दुबारा
कि यही है उम्मतों के मर्ज़-ए-कुहन का चारा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ये हुक्म है रहे मुट्ठी में बंद सैल-ए-नसीम
ये ज़िद है बहर-ए-तपाँ कूज़ा-ए-कुहन में रहे
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
वो आवेंगे मिरे घर वा'दा कैसा देखना 'ग़ालिब'
नए फ़ित्नों में अब चर्ख़-ए-कुहन की आज़माइश है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ये दैर-ए-कुहन क्या है अम्बार-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक
मुश्किल है गुज़र इस में बे-नाला-ए-आतिशनाक