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ग़ज़ल
इस हुस्न-परस्ती का यही हश्र है होना
कुल उम्र मिरी इश्क़ में बर्बाद रहेगी
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
ग़ज़ल
फ़ुर्क़त में ख़ूँ के अश्क बहाया करेंगे हम
यूँ हाल ज़िंदगी का सुनाया करेंगे हम