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ग़ज़ल
जिन की जीभ के कुंडल में था नीश-ए-अक़रब का पैवंद
लिक्खा है उन बद-सुखनों की क़ौम पे अज़दर बरसे थे
मजीद अमजद
ग़ज़ल
कान में कुंडल कड़ा हाथ में लम्बे बाल घूँघरूं वाले
तेरे तन के चार छपेरे किस जोगन का घेरा जोगी
बिमल कृष्ण अश्क
ग़ज़ल
दिल ओ जाँ फ़िदा-ए-राहे कभी आ के देख हमदम
सर-ए-कू-ए-दिल-फ़िगाराँ शब-ए-आरज़ू का आलम