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ग़ज़ल
सर-निगूँ कूचा-ए-रुस्वाई में हैं आज तलक
सौ ख़राबी से जो इस दर पे किया दोश गुज़ार
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
कूचा-ए-इश्क़ की सच पूछो तो हम ने 'परवीं'
किस क़दर ख़ाक उड़ाई है इलाही तौबा
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
'क़ुदसी' तो अकेला नहीं मैदान-ए-सुख़न में
हर कूचा-ओ-बाज़ार में फ़न-कार बहुत हैं