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ग़ज़ल
तार-ए-निगह में उस के क्यूँकर फँसे न ये दिल
आँखों ने जिस के लाखों वहशी ग़ज़ाल बाँधे
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
तुम्हारे इश्क़ ने रुस्वा किया जहाँ में हमें
हमारा ज़िक्र न तुम क्यूँकि इक जहाँ से सुनो
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
मिरी मोहब्बत भी ख़ास है क्यूँकि ख़ास हूँ मैं
सो आम लोगों में ज़िक्र इस का नहीं करूँगा
तैमूर हसन
ग़ज़ल
जामा-ए-दाग़ को मल्बूस कर अपना दिन रात
क्यूँकि ये जामा तिरे क़द पे निपट ठीक है दिल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
क्यूँकि हम दुनिया में आए कुछ सबब खुलता नहीं
इक सबब क्या भेद वाँ का सब का सब खुलता नहीं
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
मुझे क्यूँ न आवे साक़ी नज़र आफ़्ताब उल्टा
कि पड़ा है आज ख़ुम में क़दह-ए-शराब उल्टा